Tuesday 29 December 2015

तू जहाँ जहाँ रहेगा.... भाग 3 ~~ by a s pahwa भाग 3


भाग 3
पूर्व प्रकाशित अंक

तू जहाँ जहाँ रहेगा....                                               भाग 1
तू जहाँ जहाँ रहेगा....                                               भाग 2

ऐसा नही था कि राधिका किस व्याधि अथवा मनोग्रन्थि से पीड़ित है, अपने स्तर पर किशन ने जानने का प्रयत्न नहीं किया था। यदि पति-पत्नी समझदार हों तो दोनों एक दूसरे के ऐसे मित्र हो सकते हैं जिसके आगे दुनिया का कोई भी रिश्ता और मित्रता की कसौटी ठहर नही सकते। कमरे से बाहर उसने अपनी पत्नी से पूछने का अनथक प्रयत्न किया, परन्तु जैसे ही वह इस प्रंसग को छेड़ने का प्रयत्न करता, राधिका इस घटनाक्रम से बचना चाहती। एक घबराहट के अलावा वो कुछ कह नही पाती थी।
अपने अंतर्मन पर उसका कोई अधिकार नही था, ज्यादा कुरेदने पर उसकी आँखों से ढलक पड़ने वाले आँसू उसकी सच्चाई और निर्दोषता को स्वत: ही प्रमाणित करने लगते थे। किशन की हालत धोबी के कुत्ते के समान थी, राधिका को वह कुछ कह नही सकता था मगर इस स्थिति को सहना भी दुष्कर था क्यूँकि इतना तो वह भी जानता था कि रात होते ही आगे का घटनाक्रम क्या होने वाला है।

पति-पत्नी के मध्य किसी तीसरे की उपस्थिति! और फिर एक भीषण युद्ध!
इसी वजह से वो अपने बैडरूम में जाने से भी कतराने लगा था, परन्तु यहाँ एक अनजान शहर में राधिका को अकेले छोड़ वो यूँ ही रात भर सड़कों पर आवारा भटकते हुए पूरी रात भी नहीं काट सकता था। अत: उसके मन ने गवाही दी कि ऐसे में घर वापिस लौटना ही उचित होगा।

क्या था यह सब.... वो नही जानता था, पर उसे इतना आभास हो गया था कि जो भी समस्या उसकी पत्नी को है, वो कोई साधारण बात नही है, अब यह बात वह किसी से कह भी नही पा रहा था, अतः इसी वजह से अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था।
किशन अपने मन का बोझ सुना कुछ राहत महसूस करने लगा, परन्तु इससे प्रदीप के मन का बोझ टनों बड़ चुका था, हालाँकि समझ तो प्रदीप भी कुछ ज्यादा नही पाया था, परन्तु इतना तो स्पष्ट था कि कुछ तो ऐसा है जो उसकी छोटी भाभी को मथ रहा है। अब, जो काम उसके ध्यान में सबसे पहले आया वो उसने यह किया कि अपने भाई की बड़ी साली को फोन कर उसे उसकी बहन की हालत से अवगत करवा कर उससे जानना चाहा कि उसकी बहन को कोई बीमारी इत्यादि तो नही, खासतौर पर कोई मनोवैज्ञानिक रोग, यदि हो तो तुरन्त सच्चाई बताये। क्यूँकि हमारे समाज में अक्सर लोग कई बार कई बातें छिपा जाते है, इस आस में कि शायद बाद में सब ठीक हो जायेगा, बाद...?, अर्थात शादी के बाद! 

परन्तु वहाँ से उसे निराशा ही हाथ लगी, भाई की साली ने ऐसा कुछ भी होने से साफ़ इनकार कर दिया।

प्रदीप ने किशन को हिम्मत बंधाई और उसे लेकर वापिस घर की तरफ चल दिया। क्यूँकि अब जो परिस्थिति थी, उसमे परिवार के बड़ों को शामिल करना जरूरी था। अब यह बात लोक लज्जा से डर कर केवल अपने तक ही रखने वाली नही रह गयी थी, उसके नवविवाहित भाई अथवा उसकी पत्नी को कभी भी कोई क्षति पहुँच सकती थी, इतना उसे अवश्य समझ आ गया था।

घर पहुँचते ही, सबसे पहले प्रदीप ने माँ-बाप के साथ मन्त्रणा की और सारी स्थिति से उन्हें अवगत करवाया। फिलहाल के लिए यह तय किया गया कि  सबसे पहले गुड़गाँव में किसी योग्य चिकित्सक की सलाह ली जाए। एक सामान्य परिवार इससे ज्यादा और इससे बेहतर कुछ सोच भी नहीं सकता, यकायक से ही ऐसी परिस्थिति के आ जाने पर! अतः उनका निर्णय बिल्कुल स्वाभाविक ही था।

एक आम व्यक्ति की ही भांति प्रदीप इन विषयों के प्रति जानकार नही था, अत: उसने इस विषय पर हमारे साझे मित्र त्यागी जी से एक बार किसी अच्छे चिकित्सक के बारे में पूछना उचित समझा ! त्यागी जी का HR(कार्मिक एवं मानवीय प्रबन्धन) से जुड़ा होने की वजह से अक्सर अपने श्रमिकों के स्वास्थ्य एवम् दुर्घटनाओं को लेकर उनका डाक्टरों में भी उठना बैठना रहता है। अत: प्रदीप ने तुरन्त ही अपनी टाटा सफारी निकाली और उनकी कम्पनी पहुँच गया। यूँ अचानक उसे अपने सामने देख त्यागी जी हैरान परेशान तो हुए, परन्तु बहुत ही धैर्य पूर्वक उसकी सारी कहानी सुनी, ढाँढस बंधाया और फिर अपने कुछ डॉक्टर मित्रों से फोन पर सलाह कर गुड़गांव के एक अच्छे निजी अस्पताल में समय ले लिया। अस्पताल इसलिए क्यूँकि वहाँ एक ही जगह सेक्स सम्बन्धी समस्याओं से लेकर मनोरोग विशेषज्ञों की सेवाएं उपलब्ध हैं।
राधिका
नियत समय पर, प्रदीप और सुमन, किशन व राधिका के साथ अस्तपताल जा पहुँचे। और फिर जैसा कि अपेक्षित ही था, कई प्रकार के परीक्षणों के बाद भी जब कुछ नहीं निकल सका तो मनोरोग विशेषज्ञ को मामला सुपर्द कर दिया गया। कई कई घण्टों के सैशन चले, अनेक प्रकार से अवचेतन मन की अनसुलझी ग्रंथियों को खोलने का प्रयास हुआ, बचपन से लेकर जवानी तक कोई ऐसी घटना हुई हो, जिससे राधिका के अवचेतन मन में कोई विकार कहीं बहुत गहरे जड़े जमाये बैठा हो, जिसे सम्भव है कि अब राधिका भी ऊपरी तौर पर भूल चुकी हो! सम्मोहन का प्रयोग कर सवालों जवाबों के कई दौर हुए। पर जो न निकलना था वो न ही निकला।

अब, अधिक से अधिक जो परिवार कर सकता था, और डाक्टर भी इस बात से सहमत थे अत: आखिरकार वही किया गया कि फिलहाल किशन और राधिका एक साथ अकेले न रहें और कुछ दवाइयाँ जिनमे मस्तिष्क को आराम पहुँचाने वाली, कुछ ताकत की तथा अन्य नींद की गोलियाँ ही प्रमुख थी। कुछ दिन और बीते, परन्तु समस्या जस की तस थी। गाँव के से माहौल में यह भी असम्भव सा ही था कि नित्य प्रतिदिन किशन बाहर ही सोये या फिर घेर( घर से कुछ दूर एक ऐसा खुला स्थान जिसमे जानवर बाँधे जाते है और पुरुषों के दिन में बैठने और गपशप करने के लिए दो एक कमरे होते हैं।) में! अपवाद स्वरूप तो चल जाता है, परन्तु यदि ऐसा ही अधिक समय तक चला तो गाँव भर में कानाफूसी शुरू होते समय नहीं लगता।


राधिका के सामने तो कोई इस विषय पर बात नही करता परन्तु उसके निगाहों से ओझल होते ही चर्चा का केंद्र उसकी तबियत ही हो जाती। चिकित्सीय परामर्श से भी कोई लाभ नही हुआ था, भले ही नींद की दवा के प्रभाव से राधिका सो जरूर जाती थी। 

ऐसा नहीं था कि राधिका इन सब परिस्थितियों से अपरिचित थी, समस्या की गम्भीरता उसे भी पता थी। पर उसके अपने वश में कुछ नहीं था। महीना भर भी तो नहीं हुआ था अभी शादी को, कि तनाव के कारण  उसकी आँखों के नीचे गहरे काले रंग के घेरे उभरने लगे। बहू की यह स्थिति सास और जेठानी से भी छिप नही सकी, इधर किशन की हालत भी इससे कुछ बेहतर नही थी। अतः लाचार होकर परिवार ने एक अप्रिय फैसला लेते हुए आखिरकार यही फैसला लिया कि अभी की परिस्थिति में फिलहाल बहु को उसके मायके भेज दिया जाये, शायद अपने मायके के माहौल और अपने भाई बहनों के बीच उसकी तबियत कुछ सम्भल जाए....... जारी

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